भारत में इमामबाड़े बनने का चलन कब से शुरू हुआ? शिया मुस्लिम इमाम हुसैन के शोक में सभाएं (मजलिस)के लिए जाना जाता है। 11वीं शताब्दी के अंतिम ...
भारत में इमामबाड़े बनने का चलन कब से शुरू हुआ?
11वीं शताब्दी के अंतिम भाग और 12वीं शताब्दी के पहले भाग में, शिया इस्माइली समुदाय सिंध, मुल्तान, उच, अरोर, गुजरात जैसे उत्तर-पश्चिमी सीमांत क्षेत्रों में बस गया लेकिन इमामबाड़ों का कोई जिक्र नहीं मिलता। सल्तनत काल के शुरुआती समय में शोक सभाएँ मुख्य रूप से सूफी इबादतगाहों, मस्जिदों, या सैन्य शिविरों में आयोजित की जाती थीं।
1398 में दिल्ली सल्तनत कई छोटे राज्यों में बंट गई, और शियाओं के शोक स्थान (इमामबाड़े) बनाने का चलन शुरू हुआ।
जौनपुर, जो शर्की वंश (1394-1479 ई.) के तहत एक स्वतंत्र, समृद्ध और शक्तिशाली राज्य था, जो उत्तर भारत का प्रारंभिक शिया केंद्र बना।
इस काल में, मुहर्रम समारोहों को राज्य संरक्षण मिला और भव्य इमामबाड़े बनाए गए। शर्की शासकों द्वारा जौनपुर में छह से अधिक इमामबाड़े बनाए गए।
1. चत्रीघाट इमामबाड़ा: यह 1371 में मकदूम सैयद अली नसीर द्वारा शर्की शासन से पहले बनाया गया था।
2. फातिमा बीबी का इमामबाड़ा: इसका निर्माण मौलाना नसीर अली के वंशजों ने किया था।
3. खानकाह नौहगारन: यह इब्राहिम शाह शर्की (1400-1440) के शासनकाल में बनाया गया और जामी मस्जिद से जुड़ा हुआ था।
4. सदर इमामबाड़ा: महमूद शाह शर्की (1440-157) ने इसे मोहल्ला बेगम गंज में स्थापित किया।
शर्की वंश के बाद भी, जौनपुर एक प्रमुख शिया केंद्र बना रहा। मुग़ल शासन के दौरान यह और अधिक महत्वपूर्ण हो गया।
1567-1576 में, जब मुनिम खान जौनपुर का गवर्नर बना, तो उसने कटघरा में खानकाह-ज़िक्रान का निर्माण करवाया।
जौनपुर और इसके आसपास के क्षेत्रों जैसे हमजापुर, इमामपुर, सिपाह और बड़ागाँव में भी मुहर्रम समारोह के लिए शोक स्थान बनाए गए।
एस एम मासूम