आज मुसलमानों के खलीफा हजरत अली (अ.स) की शहादत दिवस जौनपुर में मनाया गया | बड़ी मस्जिद में एक मजिलस के बाद जुलूस अलम का निकाला गया ...
आज मुसलमानों के खलीफा हजरत अली (अ.स) की शहादत दिवस जौनपुर में मनाया गया | बड़ी मस्जिद में एक मजिलस के बाद जुलूस अलम का निकाला गया जिसमे या अली मौला-हैदर मौला की सदाएं गूंजने लगी | मुसलमानों ने इस दुःख के दिवस मातम किया | इस जुलुस को नवाब युसूफ रोड पे शिया समुदाय के धर्म गुरु जनाब मौलाना सफ़दर साहब ने सम्भोधित करते हुए बताया की हजरत अली (अ.स) जो हजरत मुहम्मद (स.अ.व) के दामाद भी थे |उन्होंने दीन-दुखियों की भी काफी मदद की तथा उन लोगों पर अली की कृपा और दया की अनेक मिसाले भी हैं जो तंगदस्त थे और जिनके पास खाने के लिए कुछ भी नहीं था। हजरत अली (अ0) जो कुछ कमाते थे वह गरीबांे और जरूरतमंद व्यक्तियों पर खर्च कर देते थे और स्वयं तंगी में तथा साधारण जीवन व्यतीत करते थे|
आगे जाके यह जुलुस और बढ़ने लगा और चाहर्सू चौराहे तक आते आते एक बड़ी भीड़ जमा हो गयी जो आँखों में आंसू लिए हजरत अली (अ.स) की कुर्बानियों और शहादत को याद कर रहे थे| एक तरफ से अलम लिए मातम करते मुसलमान आ रहे थे तो बलुआघाट से एक जुलुस हजरत अली (अ.स) की तुरबत लिए मातम करता , नौहा करता आ रहा था | दोनों जुलुस चाहारसू चौराहे पे मिला और मजमा जाकिर ऐ अह्लेबय्त मास्टर मोहम्मद हसन नसीम को सुनने के लिए वहीं बैठ गया | मुहम्मद हसन नसीम साहब ने काफी ज्ञान से भरी तक़रीर की और इस बात को बताया की हजरत अली (अ.स) को सुबह की नमाज़ में जब वो सजदे में थे सर पे ज़हर से भरी तलवार से शहीद किया गया | शहीद करने वाले का नाम इब्न ऐ मुलजिम था लेकिन वो दुश्मन ऐ इस्लाम का भेजा हुआ आदमी था |
मास्टर मुहम्मद हसन साहब ने कहा कि हजरत अली (अ0) की तमाम उम्र यादे इलाही में गुजरी। कत्ल की रात भी आप जिक्रे इलाही मंे लगे रहे। जिस वक्त इब्ने मुल्जिम की तलवार ने इमाम की मुनव्वर पेशानी पर वार किया उस वक्त इमाम की जुबान से पहला जुमला यही निकला ‘‘रब्बे काबा की कसम मैं कामयाब हो गया।’’ मसायब सुनकर अजादार रो पड़े। इसके बाद ताबूत का जुलूस निकला जो मातम और आंसू बहाता शाह का पंजा तक जा के समाप्त हुआ जहां हजरत अली (अ.स) का रौज़ा बना हुआ है |


