जौनपुर अह्लेबय्त के चाहने वालों और मुरीदों से हमेशा भरा रहा और इसीलिये आज भी आपको सैकड़ों क़दीमी इमामबाड़े आस पास के इलाकों में मिल जाया कर...
जौनपुर अह्लेबय्त के चाहने वालों और मुरीदों से हमेशा भरा रहा और इसीलिये आज भी आपको सैकड़ों क़दीमी इमामबाड़े आस पास के इलाकों में मिल जाया करते हैं | यह इमामबाड़े अपने आप में एक इतिहास रखते हैं कहीं कोई मुअज्ज़ा जुड़ा होता है तो कहीं मुहब्बत इ हुसैन (अ.स)|
इमाम पुर इलाके में जो जौनपुर से आठ किलोमीटर की दुरी पे हैं वहाँ इमाम हुसैन (अ.स) का एक शानदार रौज़ा जो कर्बला में मौजूद इमाम हुसैन (अ.स) के रौज़े की नकल है आपको आज भी बेहतरीन हालत में देखने को मिलेगा |
यह रौज़ा सय्यद हसन अकुंद साहब के घराने से जुदा हुआ है और मुग़ल समय का है | इसकी तामीर जनाब नजफ़ अली साहब ने की थी | यहाँ पे माना जाता है की इसकी पहली दो ईंट हजरत अली (अ.स) ने खुद लगाने के लिए दी थी जो आज भी रौज़े में मौजूद है | यहाँ भी मुरादें बहुत पूरी हुआ करती है | अफ़सोस की बात है की इतने शानदार रौज़े में आज कोई ख़ास अज़ादारी नहीं होती | बस हर नौचंदी जुमेरात को मजलिस हुआ करती है |
इमाम पुर इलाके में जो जौनपुर से आठ किलोमीटर की दुरी पे हैं वहाँ इमाम हुसैन (अ.स) का एक शानदार रौज़ा जो कर्बला में मौजूद इमाम हुसैन (अ.स) के रौज़े की नकल है आपको आज भी बेहतरीन हालत में देखने को मिलेगा |
यह रौज़ा सय्यद हसन अकुंद साहब के घराने से जुदा हुआ है और मुग़ल समय का है | इसकी तामीर जनाब नजफ़ अली साहब ने की थी | यहाँ पे माना जाता है की इसकी पहली दो ईंट हजरत अली (अ.स) ने खुद लगाने के लिए दी थी जो आज भी रौज़े में मौजूद है | यहाँ भी मुरादें बहुत पूरी हुआ करती है | अफ़सोस की बात है की इतने शानदार रौज़े में आज कोई ख़ास अज़ादारी नहीं होती | बस हर नौचंदी जुमेरात को मजलिस हुआ करती है |

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