आज मुहर्रम की दूसरी तारीख़ है। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने २ मुहर्रम सन ६१ हिजरी को करबला मे क़दम रखा था |वही मुहर्रम जिसके बारे में हमने...
इतने बड़े और महान परिवार को अचानक मदीने से जाता देखकर प्रत्येक देखने वाला अचरच में पड़ जाता। एक-दूसरे से पूछने पर लोग सरलता से इस निर्णय पर पहुंच जाते कि पैग़म्बरे इस्लाम के नाती इमाम हुसैन, यज़ीद के विरोधी हैं अतः यज़ीद उसके क्रियाकलाप और उसका शासन सबकुछ, इस्लाम विरोधी हैं जो अवैध एवं भ्रष्ट है। इमाम हुसैन ने सपरिवार मक्के में आवास किया। प्रसार व प्रचार के किसी भी माध्यम के बिना यह बात तीव्र गति से फैलने लगी कि इमाम हुसैन को यज़ीद के विरोध के कारण मदीना नगर छोड़ना पड़ा है। पवित्र मक्का नगर में लोग काबे के दर्शन और “उमरा” नामक विशेष उपासना के लिए निरंतर आते रहते हैं इसीलिए इमाम हुसैन की दूरदर्शिता ने उन्हें मक्के में आवास पर विवश किया। दूसरे नगरों में जब यह बात पहुंची तो वहां के मुसलमानों में भी यज़ीदी शासन के विरुद्ध भावनाएं भड़कने लगीं। कूफ़ा भी उन्ही नगरों में से एक था। बल्कि इस नगर के वासियों में यज़ीद विरोधी भावनाएं और भी तीव्र थीं। नगर के प्रसिद्ध और मुख्य लोगों ने इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम को निमंत्रणपत्र लिखने आरंभ किये और वे उनसे आग्रह करने लगे कि आप कूफ़ा नगर आकर रहें। यहां पर लोग यज़ीद के कारिंदों के अत्याचारों से तंग आ चुके हैं। दूसरी ओर यज़ीद को इमाम हुसैन के प्रतिनिधि हज़रत मुस्लिम बिन अक़ील के कूफ़ा नगर जाने का समाचार मिला तो उसने उबैदुल्लाह इब्ने ज़ियाद नामक व्यक्ति को बुलाया जो धूर्तता के लिए कुख्यात था। उससे कहा कि कि कूफ़े में हुसैन बिन अली के प्रतिनिधि का आगमन हो गया है। अब स्थिति तुझे संभालना होगी। तू कूफ़ा जाकर वहां के राज्यपाल से सारे अधिकार लेले और मुस्लिम बिन अक़ील का सिर मेरे पास भेज दे। इब्ने ज़ियाद जैसे माया के पुजारी के लिए इससे अच्छा अवसर और क्या हो सकता था? उसने अत्यधिक प्रसन्नता के साथ कूफ़ा जाने की तैयारी आरंभ कर दी।
हज़रत मुस्लिम ने कूफ़ा पहुंचने के पश्चात जो स्थिति देखी वह उनके लिए अत्यंत संतोषजनक थी। थोड़े से ही समय में तीस हज़ार से अधिक लोग बैअत कर चुके थे अर्थात पूर्ण समर्थन का वचन दे चुके थे। यह लोग यज़ीदी शासन से अत्याधिक पीड़ित थे। यह स्थिति देखकर हज़रत मुस्लिम ने इमाम हुसैन को कूफ़ा आने के लिए पत्र लिख दिया। इब्ने ज़ेयाद जब कूफ़े पहुंचा तो यह देखने के लिए कि कौन लोग इमाम हुसैन के समर्थक हैं उसने इमाम हुसैन जैसे वस्त्र पहने और उन्ही की भांति अमामा अर्थात विशेष पगड़ी सिर पर रखी और अपने चेहरे को छिपाकर नगर में प्रविष्ट हुआ। लोग उसे इमाम हुसैन समझकर स्वागत के लिए बड़ी संख्या में एकत्रित हो गए। निकट पहुंचकर जब उसने चेहरे से कपड़ा हटया तो आम जनता उस जैसे क्रूर को देखकर भयभीत हो उठी और फिर उसने लोगों को डराना धमकाना भी आरंभ कर दिया।
हज़रत मुस्लिम ने इब्ने ज़ेयाद के आने का समाचार सुना तो मुख़्तार सक़फ़ी का घर छोड़ दिया और उन्होंने एक अन्य प्रभावशाली व्यक्ति हानी इब्ने उरवा के घर में शरण लेली। इब्ने ज़ियाद ने पूरे नगर में अपने जासूस छोड़ दिये थे। भयभीत जनता के बीच यह घोषणा कर दी गई थी कि कोई भी मुस्लिम बिन अक़ील को शरण न दे। अंततः कई दिनों के प्रयास के पश्चात उसे पता लग गया कि मुस्लिम, हानी बिन उरवा के घर में हैं। उसने हानी से कहा कि मुस्लिम को मेरे हवाले कर दो। हानी ने बड़े साहस के साथ उत्तर दिया कि वे मेरे अतिथि हैं और मैं उन्हें तेरे हवाले नहीं करूंगा। इब्ने ज़ियाद ने यह सुनकर उनके चेहरे पर इतनी छड़ियां मारीं कि उनकी नाक की हडडी टूट गई और चेहरे का मास उखड़ गया। इस समाचार के फैलते ही हानी के क़बीले वालों ने दारुल एमारा अर्थात राज्यपाल भवन को घेर लिया परन्तु इब्ने ज़ेयाद ने उन्हें अपनी धूर्तता के सहारे यह विश्वास दिला दिया कि हानी बिल्कुल स्वस्थ है और अन्त में हानी बिन उरवा को राज्यपाल भवन की छत से गिरा कर शहीद कर दिया।
हानी बिन उरवा की शहादत के पश्चात हज़रत मुस्लिम के पास कोई ठिकाना नहीं रह गया था। नगर के प्रत्येक द्वार पर शत्रु का पहरा था और नगर के भीतर लोगों ने समर्थन का अपना वचन तोड़ दिया था। शत्रु के सिपाही उन्हे ढूंढते फिर रहे थे। एसी स्थिति में हज़रत मुस्लिम, एक गली मे थकहार कर बैठ गए। रात्रि का अंधकार बढ़ रहा था कि एक बूढ़ी महिला ने द्वार खोला। शायद अपने पुत्र की प्रतीक्षा कर रही थी। हज़रत मुस्लिम ने उसे देखा तो पीने के लिए थोड़ा पानी मांगा। वह स्त्री पानी लाई और बोली कि पानी पीकर जल्दी अपने घर चले जाओ। नगर में बड़ा ख़तरा है। हज़रत मुस्लिम ने उत्तर दिया कि एसा व्यक्त कहां जाए जिसका कोई घर न हो। तौआ नामक वह स्त्री हज़रत मुस्लिम के उत्तर को सुनकर आश्चर्य में पड़ गई और कुछ ही प्रश्नों के पश्चात उसे ज्ञात हो गया कि यह व्यक्ति पैग़म्बरे इस्लाम के परिजनों में से एक है। उसने अत्यंत आग्रह करके हज़रत मुस्लिम को अपने घर में शरण देदी। परन्तु रात गए जब उसका पुत्र घर आया और उसे हज़रत मुस्लिम की घर में उपस्थिति का समाचार मिला तो वह लालच में पड़ गया और सवेरा होते ही उसने इब्ने ज़ेयाद को सूचना देदी।
फिर क्या था। हुसैन के प्रिय भाई को यज़ीदी सिपाहियों ने घेर लिया। हज़रत मुस्लिम ने अकेले दम से कड़ा युद्ध किया परन्तु अंत में उनके मार्ग में एक गढ़ा खोदकर उन्हें उसमें गिरा दिया। फिर ज़ंजीरों में जकड़ कर उन्हें इब्ने ज़ेयाद के समक्ष लाया गया। इतिहास में आया है कि हज़रत मुस्लिम ने तीन इच्छाएं व्यक्त की थीं जिसमें से एक यह थी कि मेरे भाई हुसैन को कूफ़ा आने से रोक दो परन्तु यज़ीदी अत्याचारियों ने कोई वसीयत पूरी नहीं की और उनका सिर काट दिया तथा उनका शव गलियों में खींचते फिरे।
doosri maah'e Muharram ki hai roaeiN momeneeN
Karbala mein aa chuke haiN maalike khuld'e BareeN
Karbala mein aa chuke haiN maalike khuld'e BareeN
bast o hashtum ko Rajab ki jab chale Sultaane deeN
auur aamaada hui chalne pa beemaar o hazeeN
auur aamaada hui chalne pa beemaar o hazeeN
shAh ne farmaaya ke beemaari meiN kyuNkar saath looN
Fatima Sughra abhi kuch roaz tUm thahro yaheeN
Fatima Sughra abhi kuch roaz tUm thahro yaheeN
jab kisi jaa par hamaara hoga aey beiti qayaam
bheij kar Akbar ko bulwa leiNge hUm tumko waheeN
bheij kar Akbar ko bulwa leiNge hUm tumko waheeN
shAh se Sughra ne kaha achcha agar jaat'e haiN aap
rahne deejey meire choate bhaai ko baaba yaheeN
rahne deejey meire choate bhaai ko baaba yaheeN
jaan se apni ziyaada hai mujhe Asghar azeez
iski furqat meiN maiN mAr jaauNgi beemaar o hazeeN
iski furqat meiN maiN mAr jaauNgi beemaar o hazeeN
baad isske goad meiN Sughra ne Asghar ko liya
aur kaha roakar sidhaareiN ab shAh'e dunya o deeN
aur kaha roakar sidhaareiN ab shAh'e dunya o deeN
jab bahot israar Asghar ke liye ShAh ne kiya
tab yeh baateiN yaas o hasrat se bhari Sughra ne keeN
tab yeh baateiN yaas o hasrat se bhari Sughra ne keeN
khud se gar Asghar chala jaaey kisi ki goad meiN
to khushi se saath le jaaweiN Imam'e istaqeeN
to khushi se saath le jaaweiN Imam'e istaqeeN
sUn ke yeh phailaaey sAb ne haath Asghar ki taraf
par na utra goad se woh kaukab'e charkh'e bareeN
par na utra goad se woh kaukab'e charkh'e bareeN
nizd'e Asghar usske baad aaey Hussain Ibne Ali
aur kaha yeh kaan meiN Asghar ke kyuN aey mah jabeeN
aur kaha yeh kaan meiN Asghar ke kyuN aey mah jabeeN
bakhshishe ummat ka kya tumko nahiN mutlaq khayaal
ab chalo Karbo bala ko najm'e Khatmul MursaleeN
ab chalo Karbo bala ko najm'e Khatmul MursaleeN
sun ke yeh aawaaz ShAh ki goad meiN aaya woh tifl
algharaz raahi huEy waaN se sipeh saalaar'e deeN
algharaz raahi huEy waaN se sipeh saalaar'e deeN
woh safar hle Haram ka, aur woh bachchoN ka saath
dhoop ki hiddat, hawaaeiN garm aur tapti zameeN
dhoop ki hiddat, hawaaeiN garm aur tapti zameeN
raaste ki sakhtiyaaN saht'e huEy waarid huEy
doosri maah'e aza ko Karbala meiN ShAh'e DeeN
doosri maah'e aza ko Karbala meiN ShAh'e DeeN
Fikr* ko ab Hind meiN rahna bahot dushwaar hai
apne rauz'e par bula lo ya imam'e MuttaqeeN
apne rauz'e par bula lo ya imam'e MuttaqeeN